शनिवार, 14 अप्रैल 2018

अख़बारों में नाम तो आया करता है

गुलशन-गुलशन वो महकाया करता है l

क़दम-क़दम रहमत बरसाया करता है ll


धड़क-धड़क दिल फ़र्ज़ निभाया करता है l

ज़िन्दा हूँ, मुझको बतलाया करता है ll


तेज धूप जब झुलसाने लगती तन को,

बदली बन वो तब-तब छाया करता है l


इतना टूटा फिर भी जाने कैसे वो,

रोज़ नया इक ख़्वाब सजाया करता है l


ख़्वाबों की ताबीर मुक़म्मल करने को,

तिनका-तिनका रोज़ जुटाया करता है l


पहले दीद का रूमानी सा मंज़र वो,

अब भी सारी रात जगाया करता है l


जेब सदा खाली रहती है उसकी पर,

दिल की दौलत ख़ूब उड़ाया करता है l


रोज़ मरम्मत करवाता हूँ क़िस्मत की,

नया सितम वो रोज़ ही ढाया करता है l


हैरत है, अनजाना हूँ मैं बस्ती में,

अख़बारों में नाम तो आया करता है l

@ 'विचित्र'


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अख़बारों में नाम तो आया करता है

गुलशन-गुलशन वो महकाया करता है l क़दम-क़दम रहमत बरसाया करता है ll धड़क-धड़क दिल फ़र्ज़ निभाया करता है l ज़िन्दा हूँ, मुझको बतलाया करता है l...