रविवार, 8 अप्रैल 2018

ग़ज़ल ने थाम कर उँगली मुझे खुद से मिलाया है

भले ही मुश्किलों ने हर कदम मुझको सताया है l
मगर माँ की दुआओं ने मुझे सबसे बचाया है l

वही इक नाम लेता हूँ खुदा के नाम से पहले,
कि जिसने थाम कर उँगली मुझे चलना सिखाया है l

हवा देने लगी है संदली एहसास साँसों को,
ये’ गुलशन में हमारे कौन आ कर मुस्कुराया है l

हुआ गाफ़िल मैं’ क्यूँकर होश से अपने बताता हूँ,
मुझे इस बार साक़ी ने निगाहों से पिलाया है l 

सितम सहकर ज़माने के सदा तुम मुस्कुराये हो,
न जाने किस मसाले से तुम्हे रब ने बनाया है l

बहुत ही खूब किस्मत पाइ है तेरे दुपट्टे ने,
जिसे शानों पे’ तूने नाज़ से अपने सजाया है l 

मुझे प्यारी है’ हर ठोकर लगीं जो आज तक मुझको,
सबक मुझको जहानत का इन्होने ही पढाया है l

सदा देखी दुआ कायम तुम्हारे होंठ पर हमने,
कि इतना खूबसूरत दिल कहाँ से तुमने पाया है l

तबीयत शायराना हो गई क्यूँ कर, बताते हैं,
ग़ज़ल ने थाम कर उँगली मुझे खुद से मिलाया है l 

@ 'विचित्र'


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