शनिवार, 14 अप्रैल 2018

अख़बारों में नाम तो आया करता है

गुलशन-गुलशन वो महकाया करता है l

क़दम-क़दम रहमत बरसाया करता है ll


धड़क-धड़क दिल फ़र्ज़ निभाया करता है l

ज़िन्दा हूँ, मुझको बतलाया करता है ll


तेज धूप जब झुलसाने लगती तन को,

बदली बन वो तब-तब छाया करता है l


इतना टूटा फिर भी जाने कैसे वो,

रोज़ नया इक ख़्वाब सजाया करता है l


ख़्वाबों की ताबीर मुक़म्मल करने को,

तिनका-तिनका रोज़ जुटाया करता है l


पहले दीद का रूमानी सा मंज़र वो,

अब भी सारी रात जगाया करता है l


जेब सदा खाली रहती है उसकी पर,

दिल की दौलत ख़ूब उड़ाया करता है l


रोज़ मरम्मत करवाता हूँ क़िस्मत की,

नया सितम वो रोज़ ही ढाया करता है l


हैरत है, अनजाना हूँ मैं बस्ती में,

अख़बारों में नाम तो आया करता है l

@ 'विचित्र'


रविवार, 8 अप्रैल 2018

ग़ज़ल ने थाम कर उँगली मुझे खुद से मिलाया है

भले ही मुश्किलों ने हर कदम मुझको सताया है l
मगर माँ की दुआओं ने मुझे सबसे बचाया है l

वही इक नाम लेता हूँ खुदा के नाम से पहले,
कि जिसने थाम कर उँगली मुझे चलना सिखाया है l

हवा देने लगी है संदली एहसास साँसों को,
ये’ गुलशन में हमारे कौन आ कर मुस्कुराया है l

हुआ गाफ़िल मैं’ क्यूँकर होश से अपने बताता हूँ,
मुझे इस बार साक़ी ने निगाहों से पिलाया है l 

सितम सहकर ज़माने के सदा तुम मुस्कुराये हो,
न जाने किस मसाले से तुम्हे रब ने बनाया है l

बहुत ही खूब किस्मत पाइ है तेरे दुपट्टे ने,
जिसे शानों पे’ तूने नाज़ से अपने सजाया है l 

मुझे प्यारी है’ हर ठोकर लगीं जो आज तक मुझको,
सबक मुझको जहानत का इन्होने ही पढाया है l

सदा देखी दुआ कायम तुम्हारे होंठ पर हमने,
कि इतना खूबसूरत दिल कहाँ से तुमने पाया है l

तबीयत शायराना हो गई क्यूँ कर, बताते हैं,
ग़ज़ल ने थाम कर उँगली मुझे खुद से मिलाया है l 

@ 'विचित्र'


अख़बारों में नाम तो आया करता है

गुलशन-गुलशन वो महकाया करता है l क़दम-क़दम रहमत बरसाया करता है ll धड़क-धड़क दिल फ़र्ज़ निभाया करता है l ज़िन्दा हूँ, मुझको बतलाया करता है l...