गुलशन-गुलशन वो महकाया करता है l
क़दम-क़दम रहमत बरसाया करता है ll
धड़क-धड़क दिल फ़र्ज़ निभाया करता है l
ज़िन्दा हूँ, मुझको बतलाया करता है ll
तेज धूप जब झुलसाने लगती तन को,
बदली बन वो तब-तब छाया करता है l
इतना टूटा फिर भी जाने कैसे वो,
रोज़ नया इक ख़्वाब सजाया करता है l
ख़्वाबों की ताबीर मुक़म्मल करने को,
तिनका-तिनका रोज़ जुटाया करता है l
पहले दीद का रूमानी सा मंज़र वो,
अब भी सारी रात जगाया करता है l
जेब सदा खाली रहती है उसकी पर,
दिल की दौलत ख़ूब उड़ाया करता है l
रोज़ मरम्मत करवाता हूँ क़िस्मत की,
नया सितम वो रोज़ ही ढाया करता है l
हैरत है, अनजाना हूँ मैं बस्ती में,
अख़बारों में नाम तो आया करता है l
@ 'विचित्र'